Thursday, 13 January 2022
Saturday, 26 June 2021
आई लव यू
कई लोगों की तरह, शिवानी और विष्णु के
बीच भी कुछ-कुछ हो गया था। वे बहुत खुश थे।
जब भी समय मिलता, तो व्हाट्सप पर गप्पे मारते। एक दूसरे का हाल-चाल पूछते। उन्हें
एक दूसरे के बारे में सब कुछ पता चल गया था कि कौन कितने बजे उठता है, कब नाश्ता करता
है, कब कॉलेज जाता है, कितने बजे सोता है, वगैरह-वगैरह। हलाकि दोनों अलग-अलग कॉलेज
में पढ़ते थे, उनका समय भी अलग था और देश भी।
विष्णु जब इंजनीयरिंग कर रहा था, तब उनकी मुलाकात शिवानी
से हुई, जो बी बी ए कर रही थी। दोनों एक ही बस में सफर करते थे। एक दिन बस में बहुत
भीड़ थी। किसी व्यक्ति के जाने पर झट से शिवानी ने सीट पर कब्ज़ा कर लिया। पहले दिन कुछ
नहीं हुआ किन्तु बाद में धीरे-धीरे ध्यान देने लगी कि वह लड़का रोज़ एक ही जगह पर बैठता
है। बस में नियम था कि लड़कियाँ लड़कों के सीट पर बैठ सकती हैं किन्तु लड़के लड़कियों के
सीट पर बिना उनकी अनुमति के नहीं बैठ सकते। यदि लड़की अपनी मर्जी से लड़के के सीट में,
लड़के के पास बैठे तो ठीक हैं किन्तु यदि लड़का लड़की के इज़ाजत के बगैर बैठा तो उसकी खैर
नहीं। चाहे सीट खाली भी क्यों न हो लड़का वहाँ बैठ नहीं सकता था। हाँ यदि कोई बूढ़ा व्यक्ति
होगा तो कोई दिक्कत नहीं होती थी। विष्णु भी उस लड़की पर ध्यान देने लगा था। कहाँ चढ़ती
है कहाँ उतरती है यह भी मालूम हो गया था। कभी सीट खाली होती, तो उसकी नजरें भी शिवानी
को ढूँढ़ती और जैसे ही वो बैठने को होती, तो अपनी नजरें कहीं और फेर
लेता था जैसे उसने देखा ही नहीं। इस प्रकार तीन-चार वर्ष बीत गए किन्तु दोनों ने एक
दूसरे से बातें नहीं की।
आखरी सेमिस्टर के तुरंत बाद ही विष्णु को नौकरी मिल गई
और वह बैंगलूरू चला गया। छः महीनों के बाद वह एक बार फिर बस में उसी जगह पर बैठा मिला,
तो शिवानी ने खड़े-खड़े ही अनायास विष्णु से पूछ लिया कि “आप बहुत दिनों से नहीं दिखे”
विष्णु मुस्कुराया और अपना सिर झुकाकर मोबाइल देखने लगा। वहाँ खड़े लोग एक बार शिवानी
की ओर और लड़के की ओर देखा। शिवानी को शर्म आई और वह दूसरी ओर घूमकर खड़ी हो गई। उसे
खुद को यकीन नहीं हो रहा था कि उसने अजनबी से प्रश्न पूछा। कुछ देर के बाद, अगला सीट
खाली होता देख शिवानी बैठ गई। इज़ाजत लेकर विष्णु शिवानी के पास बैठा और कहा – “इंजीनिरिंग
के बाद मुझे बैंगलुरु में नौकरी मिल गई थी, तो मैं वहाँ चला गया था। वहाँ से मैं आगे
की पढ़ाई के लिए अप्लाई कर रहा हूँ। कॉलेज में टी सी लेने आया था।” कहते हुए उसने
अपना प्रमाणपत्र दिखाया। उसे बातें करता देख शिवानी असुविधाजनक स्थिति से बाहर हो गई।
शिवानी ने देखा और वापस कर दिया। “मैं कल वापस जा रहा हूँ। बाई द वे आई याम विष्णु।
आप से मिलकर खुशी हुई।” उसने हाथ बढ़ाया। शिवानी ने हाथ मिलाते हुए कहा – “शिवानी....”
विष्णु को पता था कि अब अगले स्टॉप पर शिवानी उतर जाएगी, उसने सोचा फोन नंबर माँग लूँ?
किन्तु शर्मिंदगी के कारण नहीं पूछ पाया।
अगले दिन जब शिवानी ने बस में विष्णु को देखा तो पूछ लिया
– “आप तो आज जाने वाले थे, नहीं गए?” विष्णु ने मुसकुराते हुए कहा – “रात
को जा रहा हूँ। मैंने सोचा कि जाते-जाते एक बार सब से भी मिल लूँगा और क्योंकि आप भी
दोस्त बन गईं हैं तो आपसे भी एक अंतिम बार मिल लूँ और आप का फोन नंबर भी ले लूँ।”
शिवानी ने अचरज से देखा। “मैं मजाक कर रहा था”- तुरंत विष्णु ने अपने आप को
संभाल लिया। शिवानी भी मुस्कुराई पर कुछ नहीं कहा किन्तु उतरते वक्त उसने विष्णु से
कहा – “आप अपना नंबर बताइए मैं सेव कर लेती हूँ.”
उसने नंबर लिया किन्तु कई दिनों तक न फोन किया न मेसेज।
दोनों अपने-अपने कार्यों से व्यस्त हो गए।
एक बार जब विष्णु ऑफिस के काम में व्यस्त था, उसे एक मेसेज
आया। “हैलो.... दिस ईस शिवानी..... मैं भी पास हो गई” विष्णु ने बहुत देर तक
सोचा कि यह शिवानी कौन है? मैंने कभी भी इस नाम से किसी को पुकारा हो.... मुझे याद
नहीं। जवाब में - “हू इस दिस.....” भेज दिया और ज़्यादा न सोचते हुए वह अपने
काम में व्यस्त हो गया। शनिवार और रविवार अपने दोस्तों के साथ सिनेमा वगैरह गया, मस्ती
की और रात वापस कमरे में आने के बाद अपनी माँ और पिताजी से बातें की। सोते समय याद
आया कि दो दिन पहले कोई मेसेज आया था। उसने उस मेसेज को फिर से पढ़ा। उसे फिर भी याद
नहीं आया। सोचा गलती से किसी और का मेसेज मुझे आ गया होगा और वह सो गया।
एक बार ऑफिस जाते समय, ट्राफिक सिग्नल पर रुके हुए कॉलेज
बस में एक लड़का और लड़की को बातें करते हुए देखा। उसे याद आया कि जब वह बस में कॉलेज
जाता था तो कई लोग ऐसे ही बातें करते थे। तब एकाएक उसे याद आया – सहसा उसके मुँह से
निकल गया – “अरे शिवानी .... वो मेसेज ...... शिट शिट शिट... करीबन तीन महीने हो
गए हैं ....।” उसकी धड़कन बढ़ गई। उसे बेचैनी होने लगी। शर्म भी आ रही थी। पूरा दिन
असुखद बीता। रात को जब सोने को हुआ तो उसने हिम्मत जुटा कर “शुभकामनाएँ” भेज
दिया। दो दिन हो गए उधर से कोई जवाब नहीं आया। वह अपने आपको कोसने लगा और बड़बड़ाने लगा
- “मैंने ही नंबर माँगा था और मैंने ही भुला दिया। बहुत गलत किया मैंने। अब वो कभी
नहीं बोलेगी मुझसे..... क्यों बोले मुझ जैसे बेवकूफ से..... तीन महीने के बाद शुभकामनाएँ.....
लानत है यार....” सोचकर भूलने की कोशिश की परंतु भूल नहीं पाया। अपनी गलती का एहसास
हो रहा था उसे। एक दिन हिम्मत करके, गूगल से नकल करके एक अच्छा सा उद्धरण भेजा। जिसमें
लिखा था –
सितम सारे हमारे, छाँट लिया करो।
नाराज़गी से अच्छा डाँट लिया करो॥
उधर से कोई भी जवाब नहीं आया। दूसरे दिन फिर एक और भेजा
–
ज़िंदगी सिर्फ चार दिन की दास्ताँ है।
कहीं रूठने-मनाने में न निकल जाए॥
एक सप्ताह तक जब उत्तर नहीं आया, तो विष्णु समझ गया कि
अब किसी को तंग करना ठीक नहीं है। अपने मन को संतुष्ट करने के लिए, खुद की शांति के
लिए एक आखरी मेसेज भेजा –
डियर शिवानी
मैंने आपसे कभी बातें नहीं की थी। इसलिए मुझे आपका नाम याद नहीं रहा। आपको दुखी करने
या जानबूझकर नज़रंदाज करने का मेरा कोई इरादा नहीं था। बस भूल गया था। जब याद आया तो
मुझे बहुत शर्मिंदगी हुई। मैं अगले महीने अमरीका
जा रहा हूँ। मेरा एम एस में दाखला हो गया है।
मुझे खुशी होगी यदि अपनी दोस्ती जारी रहेगी। हो सके तो मुझे मेरी गलती के लिए माफ कर
देना। आई एम सॉरी
हितैषी
विष्णु
अगले दिन सुबह जब विष्णु ने अपना मोबाइल देखा तो खुश हुआ। उसमें लिखा था – “योर सॉरी ईज़ एक्सेप्टड। गलतियाँ होने पर मान लेनी चाहिए न कि छुप- छुप कर, किसी के उद्धरणों को नकल करके भेजना चाहिए। मैं उसी का इंतज़ार कर रही थी।
मुझे खुशी है कि आप अमरीका जा रहें हैं। अमरीका की तस्वीरें
ज़रूर भेजना। इस बार याद रहेगा न..... “शिवानी”।
हितैषी
शिवानी
इस बार मरते दम तक याद रखूँगा क्योंकि ............
विष्णु