Wednesday 26 August 2015

मैं दहलीज हूँ .....


मैं दहलीज हूँ .......

मैं बचपन में हूँ यौवन में भी
अधेड़ उम्र में, और जरा में
मैं सुख में हूँ और दुख में भी
कल्पना में और सत्य में भी
                                                               मैं इनके मध्य बसी दहलीज हूँ
मैं राग में भी विराग में भी
मूल्यवान भी मूल्यहीन भी
हूँ मैं मुक्त और अधीन भी
जीवन में भी मृत्यु में भी
                                                                मैं इनके मध्य बसी दहलीज हूँ
हूँ मैं मिहिर के तेज किरण में
और रजनीश की शीतलता में
हूँ मैं दुल्हन सी छटा बहार में
और विधवा सी सूखी डाली में
                                                            मैं इनके मध्य बसी दहलीज हूँ
मैं शत्रु भी हूँ और मित्र भी
स्मृति में हूँ और विस्मृति में
हूँ सफल में और विफल में
हूँ भक्ति में और श्रद्धा में
                                                        मैं इनके मध्य बसी दहलीज़ हूँ
भौतिक सुखों से मैं हूँ तटस्थ
किन्तु जिजीविषा से हूँ अनुरक्त
मैं शोर भी और सन्नाटा भी
मैं कभी प्रश्न तो कहीं उत्तर भी
                                                    मैं इनके मध्य बसी दहलीज हूँ
मैं व्यक्त भी हूँ और गुप्त भी
संगीत के सप्त सुरों में हूँ
हूँ इंद्रधनुषी मुझ में सब रंग
कभी अंधकार और तिमिर तम
                                               मैं इनके मध्य बसी दहलीज हूँ
मैं आर-पार दोनों छोरों में
देव व दैत्य के मध्य में भी
मैं हर मनुज के विवेक में हूँ
मैं सब में हूँ और सब सा हूँ
                                             मैं इनके मध्य बसी दहलीज हूँ

जयहिन्द 

शारदा