Saturday 27 June 2015

तिथि गई तेल लेने (लघुकथा)

तिथि गई तेल लेने

         

 

    चरण अपने आँगन के एक छोर से दूसरे छोर तक चलते हुए बहुत ही तनावग्रस्त नज़र आ रहा था। बार-बार किसी को फोन करने का प्रयत्न कर रहा था। उसका सिर झुका हुआ एवं उसकी नज़र ऐसे ज़मीन को, एक टूक देख रहा थी जैसे अभी वहाँ से कोई जहरीली साँप या बिच्छू निकलेगा।  लगभग पंद्रह मिनट के बाद वह वहीं आम के पेड़ के नीचे बैठ गया।  घर के काम में व्यस्त होती हुई भी उसकी माँ की नज़र उस पर टिकी थी। बीच-बीच में उसे देख रही थी।  उसे समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे धीरज बँधाए। कैसे उसकी चित्त शांत कराए।
        आधे घंटे के बाद भी उसे वहीं अकेला टहलता दिखा तो उसे बहुत दुख हुआ और सोचा- हो न हो यह सब मेरा ही किया धारा है। लेकिन मैं क्या कर सकती थी?  इसमें मेरी क्या गलती है?  मैंने उसका भला करना चाहा था। जो भी होता है ईश्वर की मर्जी से होता है। मेरा क्या है मैं निमित्त हूँ और मैंने अपना धर्म निभाया। वह चरण के पास गई और धीरे से कंधे पर हाथ रखकर बोली- “मुझे माफ कर देना चरणऐसा कुछ हो जाएगा मैंने सोचा न था। सोचा था, मैं तेरी मदद कर रहीं हूँ। तेरा भला-बुरा मैं नहीं सोचूँगी तो और कौन सोचेगा बोल? चल अंदर......  चल मामा के साथ बातें करोगे तो सब अच्छा हो जाएगा। वो दो दिन यहाँ बिताने आया है फिर हैदराबाद चला जाएगा। ऐसा करो कि आज़ दोनों फिल्म देखने चले जाओ। बाहर कहीं अपनी मन पसंद का खाना भए खा लेना! कल रात भी तुमने ठीक से नहीं खाया था और इन बातों से मन भी हट जाएगा। ठीक है न?” माँ की बातें सुनकर उसने कहा-“आज़ इंडिया-पाकिस्तान का क्रिकेट मैच है हमें कहीं नहीं जाना है।” अपनी घड़ी देखते हुए- “वैसे टाइम क्या हुआ है, चलो अभी दस मिनट में शुरू हो जाएगा। मामा क्या कर रहें हैं?” बात पलटते हुए माँ से कहा- “देख माँ जो होना था सो हो गया। मैंने आपको कुछ बोला क्या? नहीं ना.....अब जो आगे होगावह देखा जाएगा।  देखते हैं क्या करना है।  ज्यादा से ज्यादा क्या होगाजो सोचा था नहीं होगा। जान थोड़ी न नहीं चली जाएगी।  चलो। कितना सोचती हो। एक ही बात को पकड़कर इतना मत खींचो। चलो..... कोई बात नहीं मैं फिर से कोशिश कर लूँगा। और भी कई रास्तें हैं..... ठीक है न...अब चलो भारत-पाकिस्तान का वर्ल्ड कप देखते हैं.......” सॉरी चरण अगली बार मैं इस बात का ध्यान रखूँगी-माँ ने मायूस होकर कहा। दोपहर का भोजन अच्छे से खाऊँगा।  कल का कसर भी निकाल दूंगा ठीक है न .....!  अगली बार मैं भी ध्यान रखूँगा। छोड़ दो उस बात को..... चलो अंदर.....
    बैंगलुरु में इंजिनियरिंग पास करने के तुरंत बाद ही, किसी दोस्त के कहने पर, चरण ने एक्सपरिमेंट के तौर पे, पूने के एक प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी के लिए आवेदनपत्र भेज दिया। उसे उम्मीद थी कि उसे वह नौकरी आने से रही क्योंकि उन्हें कम-से-कम पाँच से दस साल के अनुभवी लोगों की जरूरत थी। चरण ने यह सोचकर आवेदनपत्र भेजा था कि कम से कम उसे यह ज्ञात हो जाएगा कि कंपनियों में इंटरव्यू कैसे लेते हैं, कैसे सवाल पूछते हैं वगैरह-वगैरह। इंटरव्यू की झलक से एक अवधारणा मिल जाएगी।  अच्छी प्रैक्टिस से दूसरे इंटरव्यूज अच्छे से दे पाएगा। कंपनी के लिखित परीक्षा में चयनित हो गया। अगले दिन इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। जाते ही कंपनी वालों ने पकड़ लिया कि अनुभवी नहीं है। उन्होंने वही पूछा- जब हमने अनुभवी लोगों के लिए इंटरव्यू रखा है तो आपने कैसे आवेदनपत्र भेज दिया? प्रश्न सुनते ही उसे विदित हो गया कि इस राउन्ड में पास होने से रहा। झूठ बोलेगा तो पकड़ा जाएगा। उसके प्रमाणपत्र ही प्रमाणित करते हैं कि यह अभी-अभी पास हुआ है। उसने सच कह दिया कि वह अनुभावी नहीं है। उन्होंने कहा कि अब अनुभवी नहीं हो तो क्या पूछें?  इतने में दूसरे व्यक्ति ने कहा- परीक्षा में तो अव्वल आए हो, ओके यू टेल मी अबाउट यूरसेल्फ़.....। चरण को यह प्रश्न अच्छा लगा। उसने जवाब खुद से शुरू किया था लेकिन जब पढ़ाई, प्रोजेक्ट आदि की बात आई वह अपने विषय के बारे में बताना शुरू कर दिया जिससे वहाँ बैठे जो इंटरव्यू ले रहे थे, उन्होंने विषय पर एक-एक कर प्रश्न करने लगे और वह बताता चल गया। इंटरव्यू के बाद जब वह बाहर आया, वह बहुत खुश हुआ।  सोचा इंटरव्यू तो बहुत आसान था। लोगों ने खमखाँ डरा दिया। बस केवल एक्सपीयरेन्स सर्टिफिकेट होता ना तो नौकरी मेरी पक्की थी। सोचा चलो यह तसल्ली रहेगी कि मैंने अपनी ओर से अच्छा किया। उन्होंने कहा कि इंटरव्यू का नतीजा दो दिनों में आपके मेल में मेसेज कर दिया जाएगा। थैंक्यू बोलकर बाहर आने के बाद उसे याद आया कि किसी काम के सिलसिले में मामा हैदराबाद से आने वाले थे, घर पहुँचगए होंगे। घर पहुंचते ही मामा ने पूछा इंटरव्यू कैसे किया तुमने? चरण ने सारी रामायण सुना दी। अब बस मेल का इंतज़ार करना है। अगली सुबह उठते ही उसने मेल देखा- मार्च सत्रह तारीख के दिन, सुबह दस बजे, कंपनी में रिपोर्ट करना है।उसके मामा बाहर किसी काम के सिलसिले में जाने के लिए जूते पहन रहे थे चरण की बातें सुनकर कहा- सोचना क्या है जिसकी उम्मीद ही न थी तुझे वो जैकपोट मिल रही है, तकलीफ क्या है? हाँ यार हाँ .....। चरण को गले लगाकर बधाई कहकर पीठ थप-थापकर वे बाहर चले गए। चरण बहुत खुश हो गया वह तुरंत मेल का जवाब दे दिया कि वह दिए गए तारीख के दिन रूपोर्ट करने में सक्षम है। वह फूले न समाया। पूरे घर में ऐलान कर दिया कि उसे नौकरी मिल गई है। घर में यह खबर सुनते ही सभी लोगों ने उसे आशीर्वाद व बधाइयाँ दी। यह खुशखबरी उसने अपने सभी मित्रों को भी दे दी थी। पार्टी मनाने का दिन और जगह भी तय कर लिया। इतने में चरण की माँ ने जल्दी से पंचांग खोलकर देखा तो पता चला कि वह दिन खास अच्छा नहीं है। उसने तुरंत चरण से कहा कि वह कंपनी वालों से कहकर, और दो दिनों की मोहलत ले क्योंकि वह दिन भर्ती होने के लिए अशुभ है। चरण ने कहा-  मामा ने कहा भेज दो तो मैंने हाँ कह दी। अब बात पलटना अच्छा नहीं लगता प्लीज रहने दो। मैंने अपने दोस्तों से भी कह दिया है। दोस्तों का क्या है उनको फिर से बता देना- माँ ने कहा। अब दादा-दादी ने भी बदलने की सलाह दी। चरण ने एक अंतिम बार पिताजी का सहारा लेना चाहा।  पिताजी ने तटस्त होकर कहा- देख लो जो तुम्हें बेहतर लगे। सब अपनी-अपनी जगह सहीं हैं।  मैं क्या कह सकता हूँ इस बारे में? जो तुम्हें सही लगे.... मामा को फोन लगाया पर उनका फोन नहीं लगा। जैसे ही उसने मेल खोला, उसने देखा कि कंपनी वालों का जवाब पहले ही मौजूद है – ग्रीटिंग्स...... सी यू ऑन 17 मार्च। अरे!! कंपनी वालों ने एक घंटे में जवाब भी दे दिया?  अब यह देखकर वह फिर एक बार अपनी माँ के पास गया और कहा कि सत्रह मार्च के दिन उन्होंने तय कर दिया है।  अभी-अभी मेल आया है। फिर भी उसकी माँ नहीं मानी।  उसने चरण से पुचकार कर कहा- उसे रिक्वेस्ट करते हुए लिखेगा, तो वो मान जाएगा।  उसकी माँ ने भी अच्छा दिन देखकर उसे भेजा होगा इसलिए वह मेनेजर बन गया। मुझे उनका फोन लगाकर दे मैं उनसे बात करके मनवाती हूँ। इतनी दूर जा रहा हैमेरा मन अशांत रहेगा।  अच्छी तिथि में जाएगा तो हमें मुझे संतुष्टि रहेगी।  नहीं तो मेरा मन विचलित रहेगा।  मुझे नींद भी ठीक से नहीं आएगी। “क्या माँ मैं स्कूल का बच्चा थोड़े न हूँ कि तू मेरा वकालत करेगी मेनेजर से।  ठीक है मैं ही उन्हें फोन कर दूँगा।  चरण फोन करता है किन्तु उनके मेनेजर का फोन स्विच आफ आता है।  वह सोच में पड़ जाता है। थोड़ी देर के बाद वह विनम्रतापूर्वक एक पत्र लिखकर अपने मेनेजर को ईमेल कर देता है कि पूरी तैयारी के साथ दो दिनों बाद उपस्थित होगा। पहले वाले जवाब के लिए खेद प्रकट करते हुए, सत्रह मार्च के बजाय उन्नीस मार्च को उपस्थित हो सकने की बात लिखकर भेज दी। सोचा एक-आध घंटे में इसका जवाब भी आ जाएगा। दिन भर वह मेल का जवाब देखता रहा।  शाम के छ: बज गए थे लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया।  अब चरण का तनाव बढ़ता गया। सोचा- अब मुझे कल तक का इंतज़ार करना पड़ेगा। रात भर नींद नहीं आई। शाम को जब मामा घर आया, तो देखा कि घर में उत्सव के माहौल के बजाए सब शांति से अपना-अपना काम पे लगे हुए हैं। जैसे कोई साँप सूंघ गया हो। चरण के उतरे हुए चेहरे को देखकर मामा समझ गया कि कुछ तो गड़बड़ अवश्य है। पूछा तो उसने सब कुछ बखान कर दिया। सुनते ही मामा ने कहा- तो यह बात है। मेल करने से पहले तुमने मुझे एक बार पूछ लिया होता, मैं दीदी को मना लेता। या फिर मेरा इंतजार करता।  चलो अब जो हुआ सो हुआ। बात दो दिनों के बाद जाने की है, कोई बात नहीं......  दोस्तों से एक और पार्टी मना लेना। खैर वहाँ से जवाब क्या आया? वही तो समस्या है मामा ! जवाब नहीं आया है।  सुबह एक घंटे के भीतर दिनांक तय कर दिया था और अब दिन खत्म हो गया जवाब नहीं आया।
    चरण अंदर आकार टी. वी. के सामने बैठ गया। भारत-पाकिस्तान का मैच प्रारम्भ हुआ और उधर चरण का ईमेल के जवाब की प्रतीक्षा प्रारम्भ हुआ।  भारत टॉस जीता और बल्लेबाज करने का निर्णय लिया। किन्तु अब उसे भारत-पाकिस्तान का मैच देखने का मूड भी चला गया। अपने दोस्तों का फोन का जवाब भी नहीं दे रहा।चरण की हालत देखकर उसका मामा आग बबूला होकर सीधे अपनी बहन के पास जाकर कहता है– “क्या किया तुमने अनुराधाउसे नौकरी लगी है।  वह नौकरी करने जा रहा हैकोई स्कूल नहीं जा रहा।  उसका सारा मूड खराब कर दिया।  पंचांग के चक्कर में पड़कर तुमने उसे उलझाकर रख दिया। उसे दबाव में डालने से अच्छा होता कि मुझसे या जीजाजी से एक और बार पूछ लिया होता..... पता नहीं यह प्रमाणित हुआ है या नहीं कि वह एक आज्ञाकारी पुत्र है किन्तु यह अवश्य प्रमाणित हो गया है कि तुम कितनी बेवकूफ हो। नौकरी है, किसी की बपौती नहीं कि मन-मर्जी कर सकें।  तुझे वह न नहीं बोल सका, अब उसकी हालत देख! अब जो भी होगा उसे स्वीकारने के लिए आप सब तैयार हो जाना। कभी-भी, भगवान के लिए ऐसे निर्णय मत लो। अब हम केवल मेल की प्रतीक्षा ही कर सकतें हैं और कुछ नहीं।”
    चरण का दिल बैठ गया। वह बेचैन हो उठा। उसने अपना फोन उठाया और बड़े मामा से मिलाया। उसने सोचा बड़े मामा ही कोई अच्छी-सी सलाह दे सकेंगे। हर छोटे-बड़े काम के लिए वह अपने बड़े मामा से ही सलाह-मशवरा करता है। उसके बड़े मामामामा ही नहीं बल्कि वे उसके आंतरिक मित्र भी हैं। किन्तु चरण की बातें सुनकर वे भी भड़क गए।  सलाह तो दूर वे उससे नाराज हो गए – “तेरी माँ भी ना......, अब फोन क्यों कर रहा है? तू ऐसा कैसे कर सकता हैसारी बात बिगाड़ दी तुमने। वे लोग कंपनी के एच आर होते हैं। तेरा ईमेल देखकर उन्हें तेरी कमजोरी का पता चल गया होगा। तुमने न आने का कितना सिल्ली कारण बताया है। बेवकूफ... अपनी बेवकूफी से तुमने अच्छी-ख़ासी नौकरी को ठोकर मार दी। तेरे जैसे उन्हें कई मिल जाएँगे।  तुझे अनुभव नहीं होने पर भी उन्होंने नौकरी दी और तू उसको हल्के में लिया! अब तू दूसरे इंटरव्यू के लिए तैयारी करना शुरू कर दे। यह नौकरी का अब केवल 50-50 का ही चांस है। चरण कुछ न बोला। गुस्सा उतरते ही बड़ा मामा शांत होकर कहा- चल कोई बात नहीं अगली बार ऐसी बेवकूफी मत करना। तू फोन अपनी माँ को देना एक बार” अपनी बहन से कहा- “क्योंरी क्या आवश्यकता थी तिथि-वीथि देखने कीजब वह अच्छा काम करने जा रहा होतो बुरा कैसे हो सकता हैतिथि गई तेल लेने..... तुमने ख्वामख्वा तिथि के नाम से उसे डरा दिया। उलझन में डाल दिया बेचारे को। क्यों बेकार की बातें करके उसे गुमराह करती होअगर उसे यह नौकरी मिलकर भी नहीं मिली तो वह अपने आप को कभी माफ नहीं कर सकेगा। क्या तू माफ कर सकेगी खुद कोतुम पर से और उस पंचांग पर से उसका विश्वास उठ जाएगा। क्या फिर कभी तुमसे सलाह लेगाअब कभी-भी वह अपना काम तुम से नहीं बताएगा। टाल देगा ऐसे ही संबंध बिगड़ते हैं। इतनी पढ़ी-लिखी होकर भी तू ऐसी मूर्खता कैसे कर सकती हो....हाँ.....? चलो मैं अभी थोड़ा-सा व्यस्त हूँ... शाम को फोन करूंगा।  बाय....”
    माँ-बेटे का मूड देखकर छोटे मामा ने कहा- “चलो कोई बात नहीं। ज्यादा दुखी होने की आवश्यकता नहीं है। जो हो गयासो हो गया और जो भी होता हैहमारे भले के लिए ही होता है। कोई बात नहीं चीयर-अप यार.....  पाकिस्तान बेटिंग कर रही हैचल मैच देखते हैं....” चरण मैच के सामने तो बैठ गया किन्तु उसका पूरा ध्यान अपने लैपटाप पर ही था। किसी न किसी बहाने उठकर अपना लैपटाप या मोबाइल में मेल बाक्स देखने लगा। भारत 300 रन किए और पाकिस्तान को कड़ी चुनौती दी। विराट कोहली ने 107 रन बनाए। शानदार शतक से सभी खुश थे।  सभी का ध्यान मैच पर था और चरण का ध्यान कहीं और। अपनी गलती के कारण न वह खाना ठीक से खा सका और न ही उसकी माँ।  चरण का परध्यान और चुप्पी उसकी माँ और सभी सदस्यों को खल रहा था। औपचारिक रूप से सब एक दूसरे से बातें कर रहे थे किन्तु माहौल असुविधाजनक ही बनी रही।
    इतने में चरण का एक और करीबी मित्र बहुत ही जोश में फोन किया और उसे बधाइयाँ दी। नौकरी के बारे मेंइंटरव्यू के बारे मेंजगह के बारे में विवरण पूछ रहा था। चरण बहुत ही असुविधा का अनुभव कर रहा था। फिर भी बात को संभालने का प्रयत्न कर रहा था। जैसे-तैसे उससे निपट कर फोन रखी ही थी कि बगल वाली आंटी ने चरण के पास आकार हाथ मिलाया और कहा- बधाई हो बेटा... फोन पर तुम्हारी बातें मैंने सुन ली है। नौकरी मिल जाने के लिए बहुत-बहुत बधाइयाँ.... वेरी गुडवेरी गुड।  मुझे भी पार्टी देना होगा.... वैसे कब ज्वाइन कर रहे होचरण हिचकिचाते हुए कहा- थैंक्यू आंटी.... अभी डेट नहीं आया है। आते ही बता दूँगा। चलता हूँ आंटी।  रहोगे न दस दिनहाँ आंटी रहूँगा। आंटी बाय करके चला गई।
       पड़ोसी मैच के हर गेंद पर चिल्ला रहे थे। मैच खत्म होने के लिए बहुत कम गेंद रह गए थे। सभी लोग मैच का आनंद उठा रहे थे। विश्वकप में भारत कभी भी पाकिस्तान से नहीं हारा था। इस बार भी पूरी उम्मीद थी कि भारत फिर से जीत जाएगा। हर गेंद पर लोग चिल्ला-चिल्लाकर मजे ले रहे थे। हर विकेट पर शोर मचाते। किन्तु चरण चुपचाप अकेला आँगन में अपने सिर का भार पेड़ पर डालकर मौन बैठा था। भारत-पाकिस्तान स्पर्धा में भारत जीत गया। पड़ोसियों के बच्चे फटाके फोड़ने लगे। चरण का मामा ढूँढता हुआ बाहर आया और चरण को देखकर हँस पड़ा और कहा- “हा हा हा... क्या चरण अपनी नौकरी का मातम माना रहा है क्यादेखो चरण हर व्यक्ति ऐसे ही अनुभवों से सीखता है। जीवन का नाम ही नई बातों को सीखना है। जो कुछ भी हुआउससे कुछ न कुछ तो सीखा होगा न तुमनेपहले परामर्श कर लेता और मेल करता तो ठीक रहता। आराम से जवाब दे सकता था। तुमने खुशी के आवेश में पहले मेल का जवाब दे दिया फिर घर में बताया। जब तुम्हारे पक्ष में समाधान थातब तुम्हें जल्दी करने की क्या आवश्यकता थीधीरज से काम लेते तो कितना अच्छा होता। किसी भी समस्या का हल यूँ हाथ में हाथ धरे बैठने से नहीं होता है। चल हम बाहर टहलकर आइस्क्रीम खाकर आएँगे। तेरी माँ भी तेरे ही भलाई के लिए सोच रही थी। उसमें उसकी गलती भी नहीं है। वह तुम्हारी चिंता करती है। चल चलते हैं। तुझे अच्छा लगेगा। चलना......” आइसक्रीम खाते समय बड़े मामा का फोन आ गया। फोन पर चरण को डांट तो दिया था किन्तु उनसे रहा नहीं गया।  उन्होंने - चरण से पूछा कि ईमेल का उत्तर आया या नहींचरण ने कहा- “नहीं बड़े मामा अभी आइसक्रीम खाने छोटे मामा के साथ बाहर हूँ "  बड़े मामा ने कहा - "घर जाकर अभी मेल बाक्स देख लेना शायद अभी मेल का जवाब आ गया हो।  क्या पता भारत-पाकिस्तान के मैच के चक्कर में उसने अभी जवाब दिया हो!  करीबन दो घंटे बाद चरण घर जाते ही अपना लैपटाप पे चेक कियातो मेल बॉक्स में एक मेल आया हुआ था।  मेनेजर का ही था।  वह आतुरता से मेल खोला और पढ़ा।  उसमें लिखा था – “कोई समस्या नहीं है।  आप उसी दिन रिपोर्ट कर सकते हैं।  शुभकमानाएँ!” इस बार चरण और जोर से चिल्लाया- “मान गया......  माँ-माँ वह मान गया... छि: अगर मुझे थोड़ा भी आभास होता कि वह भी मैच देख रहा होगाइसलिए वह जवाब नहीं दे रहा थातो मैं भी मैच का आनंद उठता।” उसके छोटे मामा ने कहा-  “कोई बात नहीं कल रीप्ले देख लेना।”