जीवन नदी सी बहती धार .........
जीवन नदी सी बहती धार
आद्यांत चलता महासमर
सुख-दुःख
इसके दो छोर
मानस
हंस डोलता इधर-उधर
खाती चोट कठोर चट्टानों का
तितर-बितर हो अस्तित्व खोती
मोतियों
सा नया रूप पा लेती
पुनः
धरा पर गिर बहती जाती
रत्नों सा बौछार बारिश का
मानो दाना चुगते झुरमुट पंछी
पानी
बताशों सी श्वेत बुलबुलें
मानो
बिगड़ते-बनते मीठे सपने
ना यह रुकती, न ही थकती
निस्तब्ध निशा में भी बढ़ती
कर्कश
पाषाण, पत्थरों में से
लहराती
नागिन सी बढ़ जाती
अगर टूटती या अलसाती जाती
नव
नीरद बूंदें बन पुनः बरसाता
धरा के पट पर मृदंग बन बजता
लेकर ऊर्जा फिर नाचती बहती
परमात्मा
बनकर सागर बुलाते
नदी
आगे बढ़ती आत्मा बनके
चाहत उत्तम से उत्तमोत्तम की
लिए अभिलाषा जय प्राप्ति की
नव
नीर'द बन उमंग भरने की
पुनः मेघ बन
आसमान छूने की
रिम-झिम बरस झर-झर बहने की
कल-कल कर पल-पल चलने की
सुरम्य, सुगम्य, सुनम्य, जीवन की
ऐसा ही जीवन पुनः पुनः पाने की
जयहिन्द
शारदा
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